Monday, September 14, 2020

अल्पकालिक है अर्थव्यवस्था में गिरावट का दौर

कोरोना काल में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल छा गये हैं। जिन देशों में संक्रमण ढलान पर आने के बाद कारोबार पटरी पर आता दिख रहा था वहां कोरोना का दूसरा हमला होने से स्थितियां फिर गड़बड़ा गईं। भारत की जीडीपी नेगेटिव हो गई है। जीडीपी के मौजूदा पतन ने अर्थशास्त्रियों के आकलन कुछ गड़बड़ा दिए, लेकिन उनके अनुमान सटीक थे कि इस बार भारत की अर्थव्यवस्था नेगेटिव होगी। ‘ब्लूमबर्ग’ के एक सर्वे में 15 अर्थशास्त्रियों ने 19 फीसदी से ज्यादा के संकुचन का अनुमान लगाया था। अब जीडीपी की गिरावट का यथार्थ सामने है, तो कई सवाल उठते हैं। सबसे पहले यह कोरोना वायरस और लॉकडाउन का निष्कर्ष नहीं है। बेशक लॉकडाउन 24 मार्च से लागू हो गया था और देश का अधिकतर हिस्सा बंद था।

सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक कोरोना संकट की वजह से अप्रैल से जून की इस वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23.9 फीसदी की भारी गिरावट आई है। भारत ने तिमाही जीडीपी के आंकड़े जब से जारी करने शुरू किये हैं, उसमें यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। इसके पहले अगर जीडीपी नेगेटिव जोन में जाने की बात करें तो यह साल 1979-80 में आई थी, जब सालाना जीडीपी में 5.2 फीसदी की गिरावट आई थी। यह गिरावट भी अंतिम नहीं, अनुमानित है, क्योंकि असंगठित क्षेत्र के आंकड़े आने शेष हैं। इस क्षेत्र में वे कामगार आते हैं, जो प्रतिदिन कुआं खोदकर पानी पीते हैं। संख्या करोड़ों में होगी। जब अंतिम और संशोधित प्रारूप सामने आएगा, तो नेगेटिव अर्थव्यवस्था का आंकड़ा और भी ज्यादा होगा, लेकिन हैरान नहीं होना चाहिए। केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यम ने कहा कि यह अनुमान के मुताबिक ही है, क्योंकि अप्रैल-जून के दौरान लॉकडाउन लगा था। उन्होंने कहा कि दूसरी और तीसरी तिमाही में विकास में तेजी आएगी और भारत की इकनॉमी में ‘वी’ आकार की रिकवरी होगी।

दरअसल कोविड-19 से पहले ही हमारी अर्थव्यवस्था भारी मंदी के दौर में थी। दिसंबर, 2018 से मार्च, 2020 के बीच जीडीपी में गिरावट लगातार आठ तिमाही तक जारी रही। जो विकास-दर आठ फीसदी से अधिक थी, वह लुढ़क कर 3.1 फीसदी पर आ गई थी। निजी उपभोग व्यय की जो हिस्सेदारी 57 फीसदी थी, वह घट कर 2.7 फीसदी के न्यूनतम स्तर पर आ गई थी। यदि अर्थव्यवस्था में मांग और खपत इस स्तर तक आ जाएगी, तो जीडीपी की गिरावट कौन रोक सकता है? विशेषज्ञों और सरकार का अनुमान है कि इसी वित्त वर्ष के अंत में विकास दर पांच फीसदी से भी ज्यादा हो सकती है। तुलना अमरीका, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, कनाडा आदि देशों के साथ की जा रही है, जिनकी जीडीपी में भी गिरावट आई है और नकारात्मक संकुचन हुआ है, लेकिन चीन, रूस, दक्षिण कोरिया और ब्राजील आदि देशों के साथ तुलना क्यों नहीं की जाती, जिनकी जीडीपी सकारात्मक रही है। इस दौरान ब्रिटेन की जीडीपी में भी 22 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी है।  

कोरोना वायरस का बुरा प्रभाव रूस और ब्राजील पर भी पड़ा है। संक्रमण के लिहाज से ब्राजील आज भी दूसरे नंबर का देश है। वायरस चीन से फैला। उसके बावजूद उसकी जीडीपी तीन फीसदी से ज्यादा की दर पर बढ़ी है। बहरहाल भारत में जीडीपी सबसे अधिक सिकुड़ी है और आम फॉर्मूला है कि यदि जीडीपी में ज्यादा संकुचन होगा, तो कर्ज का अनुपात भी बढ़ेगा। फिलहाल देश पर 146 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है और हमारी कुल जीडीपी करीब 215 लाख करोड़ रुपए की है। तो शेष बची पूंजी से इतना विराट और व्यापक देश कैसे चलाया जा सकता है? अब कमोबेश देश को बताना पड़ेगा कि नोटबंदी का फैसला किसका था? तालाबंदी, लॉकडाउन की विमर्श प्रक्रिया क्या थी? चर्चा में कौन विशेषज्ञ शामिल थे? क्या सरकार ने उनके अभिमत को स्वीकार किया? यहां गौर करने वाली यह बात है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लॉकडाउन की सिफारिश कभी नहीं की थी। डब्ल्यूएचओं विभिन्न सावधानियां बरतने की पैरवी करता रहा।

जीडीपी से आम आदमी की आमदनी भी घटती है, लिहाजा वह बाजार जाने से हिचकता है। बाजार नहीं जाएंगे, तो मांग और खपत का क्या होगा? मांग नहीं होगी, तो व्यापारी, उद्योगपति निवेश कर उत्पादन क्यों बढ़ाएगा? काम नहीं बढ़ेगा, तो रोजगार के अवसर कैसे पैदा होंगे? अंततः आम आदमी ही खाली हाथ रहता है। क्या इसी महत्त्वपूर्ण चक्र के बिना जीडीपी सुधर सकती है? अधिकांश रेटिंग एजेंसियां व आर्थिक विशेषज्ञ देश की जीडीपी में गिरावट का अनुमान लगा रहे थे, लेकिन इतनी बड़ी गिरावट का अंदेशा नहीं था। निस्संदेह जीडीपी के आंकड़े मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका है और विपक्ष को धारदार हमले का मौका देते हैं। उधर, जीडीपी आंकड़े आने से पहले ही बीते सोमवार को शेयर बाजार में भारी गिरावट दर्ज की गई। शायद बाजार को अनुमान था कि अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट दर्ज होने वाली है। दरअसल, जीएसटी के कलेक्शन में आई भारी गिरावट पहले ही संकेत दे रही थी कि जीडीपी के आंकड़ों में बड़ी गिरावट आ सकती है, लेकिन इतनी बड़ी गिरावट का आकलन नहीं था। लेकिन कुछ लोगों का अनुमान है कि पहली तिमाही जरूर पूरी तरह से निराशाजनक रही लेकिन 135 करोड़ से भी ज्यादा आबादी वाले देश में उपभोक्ताओं की विशाल संख्या अर्थव्यवस्था को दोबारा खड़ा करने में बहुत सहायक होगी।

दुनिया के अनेक विकसित देश भी भारत की विशाल आबादी में अपने लिए संभावनाएं तलाश रहे हैं। सबसे अच्छी बात ये हुई कि इस बहाने आत्मनिर्भरता के प्रति रूचि जागी है। कोरोना को लेकर चीन के संदिग्ध हो जाने के कारण उसके सामान के प्रति अरुचि सीमा पर तनाव की वजह से और बढ़ गई। इसे देखते हुए भारतीय उद्योगों को संजीवनी मिलने के आसार बढ़ गये हैं। लेकिन इसके लिये सरकार को थोड़ी दरियादिली दिखानी होगी। हालांकि केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें इस समय तंगी में हैं लेकिन यही समय है जब कारोबारी जगत को अधिकतम संरक्षण देकर रोजगार की स्थिति को सुधारा जावे। ऐसा होने पर बाजारों में मांग बढ़ेगी और सरकार का राजस्व भी अपेक्षित स्तर पर पहुंचेगा।

वर्तमान में तो राजकोषीय घाटा वर्ष भर के अनुमान के करीब जा पहुंचा है। दीपावली सीजन के पहले से बाजारों में जो चहल-पहल बढ़ती है वो इस बार देखने को नहीं मिलेगी। लॉकडाउन में लगातार छूट के बावजूद चूंकि शीतकालीन पर्यटन की संभावना काफी कम हैं इसलिए अर्थव्यवस्था का एक बड़ा सेक्टर तीसरी तिमाही में भी उबर नहीं सकेगा। फिर भी शादी-विवाह में लोगों की उपस्थिति पर लगी सीमा को बढ़ा देने का असर तो होगा ही। यूं भी बरसात के बाद बाजार उठते हैं। संयोगवश इस वर्ष मानसून ठीक चल रहा है। और खेती का क्षेत्र भी अच्छी खबरें दे रहा है। जो उम्मीद जगाने वाली खबर है।

बहरहाल, जीडीपी के पहले तिमाही के निराशाजनक आंकड़े आर्थिक मंदी का भी संकेत है, जिससे आम आदमी के जीवन पर खासा विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि तीसरी तिमाही तक जीडीपी में पाॅजिटिव वृद्धि देखने को मिलेगी। भारत ने ऐसे अवसरों पर सदैव आश्चर्यजनक वापिसी की है। राजनीतिक स्थिरता की वजह से भी निर्णय प्रक्रिया काफी अच्छी है। इस सबके कारण ये सोचना गलत न होगा कि वित्तीय वर्ष समाप्त होते तक भारतीय अर्थव्यवस्था दोबारा पटरी पर आ जाएगी। हालांकि अर्थव्यवस्था की सेहत सुधरने में अभी एक साल और लगेगा किन्तु कोरोना कई मामलों में वरदान भी साबित हुआ है क्योंकि इसके चलते देश की सुप्त पड़ी हुई उद्यमशीलता  दोबारा जाग गई है, जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।

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