एकदम ब्रेक लगा। लगना ही था, आगे दारोगा साहब जो खड़े थे।
मोटर साइकिल रूकते ही उनका भाषण शुरू हो गया- ”तीन-तीन एक गाड़ी पर चढ़े हो, गाड़ी न हुई....चलो कागज दिखाओ।“ लड़के एक-दूसरे का मुंह तांकने लगे।
इतने में उन्होंने किसी और को रूकने का इशारा किया और उसकी झाड़-पौंछ करने लगे।
”लाइसेंस दिखाओ“ ये आवाज हवलदार साहब की थी, जो पीछे सिपाहियों के साथ पर्ची काट रहे थे। लड़कों के हाव-भाव से वो ताड़ गए कि मामला बिल्कुल साफ है।
दो मिनट मौन रहकर धीरे से बोले-”अच्छा सौ रूपये निकालों और जाओ।“
लड़के गिड़गिड़ाने लगे-”हमारे पास कुछ नहीं है सर।“
”अच्छा पचास निकालो इससे कम में तो दारोगा साहब मानेंगे ही नहीं।“
लड़के अब हाथ-पैर जोड़ने लगे ”अंकल, विश्वास करिए हमारे पास एक भी पैसा नहीं है। हम झूठ नहीं बोल रहे हैं।“
”.....अरे भाई, बीस रूपये तो कम से कम दो।“ आवाज बंदूक थामे सिपाही की थी। लड़कों के जुड़े हाथ व रूँधी आवाज उनकी हालत बता ही रही थी। अनुनय-विनय के बाद लड़के मोटर साईकल स्र्टाट करने लगे.......जाते-जाते उनके कानों में हवलदार साहब की आवाज गूँजी ”अगली बार जेब में पैसे रखकर घूमने निकलना......साले भिखमंगे, घूमने चले आते है......................।
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