प्रदेश की दिनों-दिन बदहाल होती कानून व्यवस्था और विपक्षी दलों के हमलों से परेशान मायावती ने इसी साल विधानसभा चुनाव करवाने का मन बना लिया है। सूत्रों की माने तो सरकार ने अंदर ही अंदर इसकी तैयारी भी कर ली है और अगले माह मानसून सत्र के दौरान सरकार यूपी विधानसभा चुनाव की सिफारिष कर सकती है। कहा तो ये जा रहा है कि खुफिया रिपोर्टो के आधार पर सरकार ने निर्धारित समय से छह माह पूर्व ही चुनाव करवाने का मन बनाया है लेकिन असलियत यह है कि भ्रष्टाचार, तीन-तीन सीएमओ की हत्या, रेप की खेप, दलित अत्याचार की बढ़ती घटनाओं, मजदूर, किसान की बदहाली का लंबी होती कहानियों और राहुल गांधी की सक्रियता ने बसपा सुप्रीमों की नींदें उड़ा रखी हैं। वहीं अपने मंत्रियों, विधायकों और पदाधकारियों की हरकतों ने भी माया की मुसीबतों में इजाफा किया है। दिनों-दिन विरोधी माहौल के बढ़ते आभा मंडल से घबराई माया ने इसी साल संभवतः नवंबर माह में चुनाव करवाने का मन बना लिया है। खुफिया रिपोर्टो के अनुसार अगर सरकार निर्धारित समय से पूर्व चुनाव करवा लेती है तो वो दुबारा सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती है। सत्ता के नषे में चूर माया पर आज चहु ओर से मुसीबतों का पहाड़ टूटा हुआ है। सरकार के विरूद्व जनता का गुस्सा और विरोध का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। सत्ता विरोधी वातावरण और विरोधियों की चालों से निपटने के लिए माया ने निर्धारित समय से पूर्व चुनाव करवाने का इरादा कर लिया है, पिछले दिनों राहुल की किसान पंचायत के बाद माया ने पार्टी पदाधिकारियों की मीटिंग के दौरान बसपाईयों को राहुल की काट तो बताई ही थी वहीं चुनाव के लिए कमर कसने का फरमान भी सुनाया था। अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो इसी साल नवंबर में विधानसभा चुनाव का अखाड़ा सज जाएगा।
गौरतलब है कि राहुल गांधी यूपी सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द बने हुए हैं। राहुल के साथ उनकी टीम मिशन 2012 में दिन रात एक किये है। दिग्विजय सिंह, रीता बहुगुणा जोशी, पीएल पुनिया, बेनी प्रसाद वर्मा, जगदम्बिका पाल आदि कांग्रेसी नेता माया सरकार को घेरने का कोई मौका चूकते नहीं हैं। कांग्रेस के अलावा सपा, भाजपा, रालोद और पीस पार्टी भी चुनावी दंगल में कूदने को पूरी तरह से तैयार है। बसपा की तर्ज पर सपा, भाजपा और अन्य दल संभावित उम्मीदवारों की धोषणा आए दिन कर रहे हैं। प्रदेश में छोटे दलों ने एक संयुक्त मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ने का मन बनाया है। रालोद, पीस पार्टी, बीएस4 आदि लगभग दर्जनभर दल मिलकर बड़े दलों की गुणा-भाग ध्वस्त करने की तैयारियों में जुटे हुए हैं। अंदर ही अंदर सबकी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। असल में जिन मुद्दों को मायावती सत्ता के नशे में चूर होकर हल्के में ले रही थी वहीं अब उनकी गले की फांस बनते जा रहे हैं। राहुल को यूपी में बिग फैक्टर ने समझने वाली माया आज सबसे अधिक राहुल से ही भयभीत है। भट्ठा पारसौल की घटना से लेकर अलीगढ़ में किसान पंचायत ने माया को हिला कर रख दिया है। सपा और रालोद भी अंदर ही अंदर यही चाहते हैं कि राहुल फैक्टर के और अधिक ऐक्टिव होने से पूर्व चुनाव उनकी सेहत के मुफीद होगा क्योंकि अगर कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक उसकी ओर रूख करता है तो निश्चित तौर पर दलित, अल्पसंख्यक, पिछड़ी जातियों और किसानों की राजनीति करने वाले कई दलो की दुकानों के षटर डाउन हो जाएंगे वहीं कांग्रेस सोशल इंजीनियरिंग के मुख्य घटक ब्राहाण वोट को भी प्रभावित करने में सक्षम है। ऐसे में सोशल इंजीनियरिंग की हवा से फूले बसपा के हाथी की हवा निकलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
मायावती ऊपर से तो कठोर और सख्त दिखाई देती हैं। अपने पहले तीन कार्यकाल में उनकी यही छवि आम जनमानस के दिलों में बसी थी। सूबे की नौकरशाही उनके सामने पड़ने से घबराती थी। अपराधी और काले कामों में लिप्त हाथ यूपी से बाहर अपना ठिकाना ढूंढते थे। लेकिन 2007 में पूर्ण बहुमत के दम पर अपनी सरकार बनाने के बाद से ही माया ने मनमर्जी और तानाशाही का ऐसा राज चलाया कि मानो उन्हें दुबारा जनता के दरबार में हाजिरी लगानी ही नहीं है। पिछले चार सालों में बड़ी से बड़ी मुसीबत को हवा में उड़ाते हुए माया ने मनमाफिक और मुनमुताबिक जो चाहा वो किया। प्रदेश की जनता के खून-पसीने की कमाई के अरबों रूपयों को स्मारकों, पार्कों और मूर्तियों में लगाकर मायावती ने एक तानाशाह की भांति जनता के हक के पैसे को अपनी ख्वाहिशों और निजी लाभ के लिए व्यर्थ गंवा डाला। माया ने सरकार के चार साल के रिपोर्ट कार्ड को खूब तबीयत से सजाया संवारा तो जरूर है लेकिन जमीनी हकीकत किसी से छिपी नहीं है। रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून-व्यवस्था और प्रशासन के मामले में सरकार हर मोर्च पर असफल रही है। प्रदेष में शराब माफिया का राज है। अपने चेहते ठेकेदारों और माफियाओं को औने-पौने दामों में चीनी और कपड़ा मिले बेचकर माया ने प्रदेश की जनता और श्रमिकों के साथ धोखा किया है। पिछले चार सालों में प्रदेष में माफिया और ठेकेदारों का साम्राज्य स्थापित और मजबूत हुआ है। सरकार का लगभग हर मंत्री, विधायक और बसपा पदाधिकारी परोक्ष या अपरोक्ष रूप से ठेकेदारी और दलाली में लिप्त है। कानून व्यवस्था को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने वाली मायावती की पार्टी के कई मंत्री, विधायक और पदाधिकारी सीधे तौर पर अपराधों में लिप्त हैं और जेल की षोभा बढ़ा रहे हैं। प्रदेश में नियम, कानून की सरेआम धज्जिया उड़ाई जा रही है। सूबे के लगभग हर विभाग में सीएम फंड के नाम से खुली वसूली पिछले चार साल से जारी है। महिलाएं, बुजुर्ग, किसान, छात्र, शिक्षक, वकील, कर्मचारी अर्थात समाज का हर वर्ग माया सरकार की ज्यादितयों से परेशान है। कुछ समय पूर्व तक जो लोग ये कहा करते थे कि माया को टक्कर दे पाने की हिम्मत किसी दल में नहीं है आज उनके सुर बदले हुये हैं। अब ये चर्चा आम है कि माया के लिए ये चुनाव आसान नहीं होगा। राजनीतिक गलियारों और आम आदमी के बीच चल रही इन चर्चाओं और जमीन हकीकत से बसपा सुप्रीमों भी अनजान नहीं है, इसलिए स्थिति के बद से बदतर होने से पूर्व ही चुनाव करवाने का दांव चलकर मायावती अपने विरोधियों का धूल चटाने के मंसूबे पका चुकी है।
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