Sunday, August 01, 2010

महंगाई डायन खाए जात है

महंगाई  डायन खाए जात है
सखी सैयां तो खूब ही कमात है, महंगाई  डायन खाए जात है...........गीत के बोल देश में दिनों दिन बढ़ती महंगाई  की समस्या के संदर्भ में इतने प्रांसगिक है कि देश भर से यही आवाज आने लगी है कि महंगाई  डायन खाए जात है। गाने और फिल्में देश और समाज का दर्पण ही होते हैं क्योंकि फिल्मकार, कलाकार हमारे और आपके ही बीच के आदमी होते हैं और जो समस्या देश का आम आदमी झेलता है उसे वो उस लेवल तक तो नहीं झेलते लेकिन आम आदमी के साथ क्या क्या होता है उसकी कम या ज्यादा जानकारी उनके पास होती है। पीपली लाइव का यह गाना आज देश में हर ओर बज रहा है। गाने के सीधे सादे बोल देश के आम आदमी के अंतर्मन मन से निकली हुई आवाज है जिसे सरकार या कोई  भी जिम्मेदार सीट पर बैठा आदमी सुनने को तैयार नहीं है। सरकार उलूल जलूल तर्क  देकर समस्या से मुंह मोड़े बैठी है और विपक्ष धरना प्रदर्शन, जलूस, बंद करके अपने कर्तव्य से इतिश्री समझ रहा है। जिम्मेदार और जिनके कंधों पर देश के आम आदमी की समस्याओं और दु:ख तकलीत सुनने समझने की जिम्मेदारी है वो तो कानों में तेल डालकर बैठे हैं। पिछले दो सालों में महंगाई  ने सारे रिकॉर्ड  तोड़ डाले हैं। देश में खाने पीने के सामान से लेकर आम आदमी से जुड़ी हर चीज के दाम इस कदर बढ़े हैं कि आम आदमी ये सोचने को मजबूर हो गया है कि आखिरकर उसका जीवन यापन कैसे होगा। आम आदमी महंगाई  के बोझ तले दबे जा रहा है और सरकार केवल आश्वासन  देकर जनता को लालीपाप देने में लगी है। सरकार के मंत्री और जिम्मेदार लोग बेतुके और शर्मनाक बयान देकर जनता के घावों पर नमक छिड़कने का काम कर रहे हैं और बेचारी जनता तो महंगाई के बोझ तले दबे जा रही है। पिछले दिनों पेट्रोल-डीजल और रसोई  गैस के दाम बढ़ाकर सरकार ने आम आदमी की मुसीबतों को और बढ़ाया ही है। ऐसी संकट की घड़ी में जनता के साथ कोई  भी खड़ा नहीं है और व्यापारी वर्ग  मनमाने दाम वसूलने में लगा है। दरअसल देश में भ्रष्टाचार इस कदर हावी हो चुका है कि आम आदमी तक किसी भी योजना का लाभ पहुंच नहीं पाता है। लोकतंत्र में भ्रष्टतंत्र का बोलबाला व दबदबा है। नेता-व्यापारी व अफसरों का गठजोड़ मिलकर आम आदमी का जीना मुहाल किए हुए है। पीपली लाइव का ये गाना देश के आम आदमी के दु:ख दर्द  और संकट का सच्चा प्रतिनिधि और उसकी अपनी आवाज बनकर उभरा है। आम आदमी की सोच और आवाज को उठाने के लिए फिल्म के साथ साथ अन्य मंचों  से भी आवाज उठनी चाहिए। सही मायनों में ऊंची सीट पर बैठे महानुभावों को नींद से जगाने में ये गाना कुछ न कुछ सहायक जरूर होगा।

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