Wednesday, June 29, 2011

मशाल बुझनी नहीं चाहिए

जंतर-मंतर में अनशन कर गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के विरूद्व जो शंखनाद किया है वो असल में काबिलेतारीफ है। बरसों-बरस से भ्रष्टाचार की चक्की में  पिस रही देश  की जनता को जगाने और आम आदमी को उसके भीतर छिपी शक्ति का एहसास अन्ना के आंदोलन ने करा दिया। लोक पाल बिल की ड्राफ्टिंग कमेटी में सिविल सोसायटी के सदस्यों को शामिल करवाकर अन्ना ने प्रशासन और संवैधानिक मसलों पर आम आदमी की सच्ची भागीदारी को सुनश्चित भी किया है। भ्रष्टाचार देश की व्यवस्था और तंत्र में लगी वो लाइलाज बीमारी है जो सरे आम देश के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्वास्थ्य को लगातार खराब कर रही है। सरकारी महकमों से लेकर देश के कोने-कोने में भ्रष्टाचार का भूत सीना तान कर विचरण कर रहा है और सब कुछ जानते, समझते हुए भी देश को आदमी बिना किसी कष्ट और प्रतिरोध के भ्रष्ट व्यवस्था का शीश  झुकाकर या फिर निजी स्वार्थों को साधने के लिए पोषक और हितेषी बना हुआ है। लाखों भ्रष्टाचारियों की भीड़ में अगर इक्का-दुक्का आवाज भ्रष्टाचार के खिलाफ उठती भी है तो वो भीड़ में  दब कर रह जाती है। ऐसे विपरित और विषम परिस्थितियों में अन्ना ने जिस हिम्मत और संघर्ष की राह सारे देश को दिखाई है उसने आम आदमी को भ्र्रष्टाचार से लड़ने की हिम्मत देने के साथ ही साथ एक नयी सोच को भी जन्म दिया है कि भ्रष्टाचार से मिलकर लड़ा और जीता जा सकता है।
आजादी से लेकर अगर आज तक कच्चा-चिट्ठा खंगाला जाए तो सैंकड़ों घोटालों और गड़बड़ियों की लंबी फेहरिस्त आपको मिलेगी। दिल्ली के तख्त पर चाहे किसी भी दल की सरकार रही हो सच्चाई यह है कि देश को लूटने और भ्रष्टाचार का ग्राफ ऊपर चढ़ाने में किसी ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। लगभग सभी दल और सैंकड़ों नेता भ्रष्टाचार के दलदल में धंसे हुए हैं। हाल ही में उजागर हुए आदर्श हाउसिंग, राष्ट्रमंडल खेल और 2जी स्पेक्ट्रम घोटालों ने देष की अर्थव्यवस्था को तो बुरी तरह प्रभावित किया ही है वहीं अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर भी देश की छवि को गहरा धक्का लगा है। आज देश  में हर क्षेत्र और विभाग में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों का बोलबाला और कब्जा है। भ्रष्ट व्यवस्था घुन की भांति देश के आम जनमानस के हिस्से के अनाज से लेकर विकास का पैसा और सामग्री चट कर रही है और गरीब आदमी आज भी तिल-तिल कर मरने को मजबूर है। भ्रष्टाचार के कारण गरीबों के लिए संचालित की जा रही लाखों-करोड़ों रूपयों की योजनाएं नाकाम साबित हो रही है। योजनाओं का लाभ अपात्रों या फिर काले धन के रूप में सरकारी अफसरों, मंत्रियों और बाबुओं के बैंक बैंलेस को ही बढ़ा रहा है। अनाज, स्वास्थ्य सेवाएं, रोजगार, विकास, पर्यावरण, शिक्षा और अन्य अनेक क्षेत्रों में देश के आम आदमी और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों के लिए जो भी योजनाएं चलाई जाती हैं वो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। सरकारी अमला और एजेंसियां लंबी चौड़ी कागजी कार्रवाई से सरकारी फाइलों पर ही विकास, उत्थान, उन्मूलन और झूठे आंकड़ें की बाजीगरी को ही अपनी उपलब्धि मानते हैं। जनता का दुःख-दर्दे और पीड़ा सुनने का समय किसी के पास भी नहीं है। जिन तथाकथित प्रतिनिधियों को हमने और आपने चुनकर संसद और विधानसभा में भेजा है वो अपने और अपनों के लिए सुख-सुविधाएं और आराम के तमाम दूसरे साधन जुटाने में ही व्यस्त हैं।

राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था के अनुसार देश में आम आदमी के पास राजनीतिक दलों की मदद लेना या उनका पिछलग्गू बनना एक तरह से मजबूरी ही है। क्यों कि राजनीतिक दलों के अलावा देश की जनता के पास ऐसा कोई बड़ा संगठन या मंच उपलब्ध नहीं है जिसका प्रयोग वो देश की सरकार को जगाने और अपनी दुःख-तकलीफ बताने के लिए कर सकें। सरकार को घेरने के लिए विपक्षी दल ही आम आदमी का एकमात्र सहारा बनते हैं। लेकिन अंदर ही अंदर सब राजनीतिक दल अपने वोट बैंक और दल की नीतियों को ध्यान में रखकर ही आंदोलनों का खाका खींचते हैं और अपने हितों के लिए ही आम आदमी की अपार ताकत को ‘यूज’ करते हैं। परिणामस्वरूप आम आदमी की असली आवाज कहीं दबकर रह जाता है। राजनीतिक दल अपना हित साधने के बाद जनहित से जुड़े मुद्दों और मसलों को किनारे रख देते हैं ऐसे में आम आदमी खुद को अपाहिज, असमर्थ और अनाथ अनुभव करने लगते हैं। मंच के अभाव में बरसों बरस जनता राजनीतिक दलों की फुटबाल बनी रही और हमारे तथाकथित नेता जनता को इधर से उधर उछालते रहे। राजनीतिक दलों की मिलीभगत और षडयंत्र को अन्ना के अनशन ने छिन्न-भिन्न कर दिया है। आज लगभग प्रत्येक राजनीतिक दल अन्ना और उनकी टीम से घबराया हुआ है। अन्ना ने आम आदमी को एक सशक्त और ठोस मंच प्रदान किया है। असलियत यह है कि अंदर ही अंदर देश का आम आदमी भ्रष्टाचार से ऊब चुका है और भ्रष्टाचार से स्थायी रूप से निजात चाहता है। जंतर-मंतर पर उमड़े जनसमूह और देश के कोने-कोने से मिले जनसमर्थन ने अन्ना के मनोबल को तो बढ़ाया ही वहीं सरकार को भी ये चेता दिया कि जनता को कम करके आंकना या उनके धीरज की परीक्षा लेना ठीक नहीं है। भ्रष्टाचार के विरूद्व देश भर में बने वातावरण ने हाल ही में पांच प्रदेशों में हुए विधानसभा चुनाव परिणामों पर व्याप्क प्रभाव डाला है। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में सत्ताधारी दलों की जो दुर्गति जनता ने की है वो भ्रष्टाचार के विरूद्व आम आदमी की भावनाओं और क्रोध का ही प्रदर्शन तो है।

भ्रष्टाचार किसी भी देश के माथे पर कलंक तो है ही वहीं देश के आर्थिक स्त्रोतों और संसाधनों का भी भारी क्षति पहुंचाता है। भ्रष्टाचार के कारण देश में विकास कार्य बाधित होते हैं और आदमी विकास की लहर से वंचित रह जाता है। देश के आम आदमी को असल में ये मालूम ही नहीं है कि उसके कल्याण और उत्थान के लिए हर साल करोड़ों रूपये का बजट पास होता है। नेता, अफसर और ठेकेदार की तिगड़ी मिलकर भ्रष्टाचार का पालन-पोषण करती है और मिलकर मलाई काटती है। इस देश में आम आदमी इतना बेबस और असमर्थ है कि वो देश की संसद तक तो क्या इलाके के कारपोरेटर तक अपनी आवाज नहीं पहुंचा सकता है। सरकारी मकड़जाल और पेचीदा नीतियां आम आदमी को कुछ समझने का मौका ही नहीं देती हैं। जिस देश में आधे से अधिक आबादी निरक्षर और गांवों में निवास करती हो वहां चालाक, धूर्त और भ्रष्ट सरकारी अमला भोली-भाली जनता को अपने चंगुल में फंसाकर फाइलों और सरकारी कागजों में विकास की गंगा बहा देता है। विडम्बना यह है कि देश की पढ़ी लिखी जनता के पास इतनी फुर्सत ही नहीं है कि वो देश में हो रहे अत्याचार, अनाचार, भ्रष्टाचार और आम आदमी से जुड़े मुद्दों का विरोध कर सके। जनता की इसी मजबूरी और हालात का लाभ चालाक, स्वार्थी और धूर्त तथाकथित नेता उठाते हैं और जनता का शोषण करते रहते हैं।

अन्ना ने भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने और साफ-सुथरी व्यवस्था के लिए जो पाक अभियान षुरू किया है उससे देश के आम आदमी को बड़ी उम्मीद और आस है। कहावत है कि एक अकेला चना, भाड़ नहीं फोड़ सकता है उसी तरह एक अकेले अन्ना या उनकी टीम के सदस्य भी भ्रष्टाचार तक आंकठ में डूबी व्यवस्था और तंत्र का चाल-चेहरा और चरित्र अपने दम पर बदल नहीं सकते हैं। अन्ना की असली षक्ति हम-आप और हर भारतीय है। आज आवशयकता इस बात की है कि अन्ना ने भ्रष्टाचार के घने अंधेरे को चीरने के लिए जो मशाल जलाई है उसे हम सब को मिलकर मशाल को जलाए रखना होगा। क्योंकि भ्रष्टाचार के विरूद्व लड़ाई लंबी और मुशकिलें भरी है। ऐसे में हम सब को कंधे से कंधे और कदम से कदम मिलाकर काम करना और चलना होगा तभी आसुरी और भ्रष्ट ताकतों से हम लोहा ले पाएंगे। क्योंकि ये सच्चाई है कि जब जनता एक मंच पर आकर सस्वर चिल्लाने लगती है तो शक्तिशाली सत्ता और सिंहासन हिलने लगते हैं।

No comments:

Post a Comment