Wednesday, July 27, 2011

बहन जी को चढ़ी है खुमारी और चैनलों की है तैयारी

नोएडा एक्सटेंशन के गांव हैबतपुर, बिसरख, इटैडा, घघोला, रोजा याकुबपुर, देवला के अलावा बादौली, घोड़ीबछेड़ा, कोडली बागर, सलारपुर खादर के किसानों की याचिका पर सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट मंे मंगलवार को होगी। इन गांवों के किसानों के वकीलों का कहना है कि तीन गांवों पर फैसला सुनाए जाने की संभावना ज्यादा है। ये हैं रोजा याकुबपुर, देवला और एक्सप्रेस-वे से सटा बादौली गांव। मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट से निकलने वाले निर्णय पर नोएडा एक्सटंेंशन का भविष्य काफी हद तक निर्भर करता है, सुनवाई से कई दिन पहले ही न्यूज चैनलों और मीडिया के लिए नोएडा एक्सटेंशन में जमीन अधिग्रहण का मसला ‘हाॅट केक’ बना हुआ है। लगभग संपूर्ण मीडिया इस मुद्दे की लाइव कवरेज, किसान पंचायत, निवेशकों के मांगों और प्रदर्शन के साथ ही साथ किसानों की पंचायत लगाकर मसले को विस्तार से समझाने और सरकार पर दबाव बनाने और किसानों को उनका हक और अधिकार दिलाने की कोशिश में रात-दिन एक किये है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि किसान, बिल्डर और नोएडा एक्सटेशन में सपनों के घर का सपना संजोए लोगों की हाहाकार और मांगों पर ध्यान देने की बजाय यूपी सरकार मदमस्त हाथी की भांति आराम फरमा रही है। नोएडा एक्सटेंशन में जमीन से जुड़ी समस्याओं और किसान-पुलिस संघर्ष की गाथा किसी से छिपी नहीं है बावजूद इसके सरकार मुद्दे को उलझाने और कानूनी तौर अपना पक्ष मजबूत करने में व्यस्त है। सरकार इस मुद्दे को जितना हल्का करके ले रही है उतना ये मुद्दा असल मंे है नहीं। ऊपरी तौर पर ये मसला किसानों से जुड़ा दिखाई देता है लेकिन आज इसमें बिल्डर और निवेशक भी शामिल हो चुके हैं। जो समस्या किसी समय सैंकड़ों किसानों से जुड़ी थी आज वो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर लाखों लोगों को प्रभावित कर रही है। लेकिन माया सरकार के भ्रष्ट, सुस्त, कामचोर और कमीशनखोर अफसर और कर्मचारी कानों में तेल डाले बैठे हैं और सूबे की जनता दर-दर भटकने और आंदोलन करने को विवश है।

गौरतलब है कि पिछले एक दशक में नोएडा और नोएडा एक्सटेंशन में विकास और उलूल-जलूल बहाने बनाकर यूपी सरकार ने किसानों से उनकी उपजाऊ जमीन को हड़पने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक अनुमान के अनुसार पिछले एक दशक में सरकार ने कुल 85 हजार एकड़ जमीन सरकार ने किसानों से अधिग्रहीत की। नोएडा में 1976 से 1997 के बीच जिन 11 गांवों की जमीन पुरानी अधिग्रहण पॉलिसी के तहत अधिग्रहीत की गई थी, वहां के किसानों ने सोमवार को एमपी सुरेंद्र सिंह नागर और चेयरमैन नोएडा अथॉरिटी बलविंदर कुमार से मुलाकात कर अपनी छह प्रमुख मांगें रखीं। किसानों का कहना है कि उन्हें भी पांच प्रतिशत जमीन दी जाए। हरौला, निठारी, चैड़ा सादतपुर, अट्टा, छलेरा बांगर, मोरना, नयाबांस, झुंडपुरा, रघुनाथपुर, गिझौड़, आगाहपुर व बरौला गांव के किसान शामिल थे। शाहबेरी और पतवाड़ी गांव के किसानों के हक में फैसला आने के बाद दूसरे गांव के किसानों के दिल में भी ये उम्मीद जगी है कि कोर्ट उनके हक में फैसला सुनाएगा।

पूरे मामले में किसान, निवेशक और बिल्डर ही इधर-उधर भटकते और बयानबाजी करते नजर आ रहे हैं लेकिन सरकार पूरे सीन से गायब है लेकिन लोकतंत्र के चैथे स्तंभ प्रेस ने किसानों और निवेशकों के हक और हकूक की लड़ाई का बीड़ा उठा रखा है। नोएडा जल रहा है और सरकार आराम फरमा रही है। असल में भट्ठा पारसौल में किसानों और पुलिस के बीच हुयी गोलीबारी और लूटपाट ने माया सरकार को कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा है। कांग्रेस युवराज राहुल गांधी ने भट्ठा पारसौल के किसानों की समस्या और दुख-दर्दे का साथी बनकर माया सरकार को कदम कदम पर घेरने की कारगार रणनीति से माया सरकार पर किसान विरोधी होने की मुहर लगा दी। बची खुची कसर राहुल की पदयात्रा और अलीगढ़ के नुमाइश मैदान में आयोजित किसान महापंचायत ने पूरी कर डाली। पूरे प्रकरण पर गौर किया जाय तो भट्ठा पारसौल में पुलिस-प्रशासन का तांडव माया सरकार के ताबूत में आखिरी कील तो नहीं लेकिन किसान विरोधी साबित जरूर कर गया। राहुल की पदयात्रा और किसान पंचायत से घबराई माया समय से पूर्व चुनाव करवाने की तैयारी तो कर ही रही है वहीं शाहबेरी और पतवाड़ी के किसानों के हक में फैसला आने के बाद सरकार ने इस मुद्दे पर मुंह ने खोलने की शायद कसम खा ली है। विधानसभा चुनावों के मद्देनजर मायावती ये नहीं चाहती है कि सरकारी बयानबाजी और कार्यवाही से विपक्षियों को बैठे-ठाले कोई मुद्दा मिले। वहीं पिछले दो तीन महीनों सरकार की जो किसान विरोधी छवि बनी है, अभी सरकार उसी के डैमेज कंट्रोल पूरा नहीं कर पाई है। ऐसे में जब राहुल गांधी, अजीत सिंह और मुलायम सूबे में पूरी तरह से सक्रिय है ऐसे में किसानों से जुड़े मसलों पर बयानबाजी करके सरकार किसी पचड़े मेें पड़ना नहीं चाहती। सरकार को मालूम है कि कानून दाव पेंच में उलझाकर ही इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। नोएडा अथॉरिटी के चेयरमैन बलविंदर कुमार वकीलों की लंबी चैड़ी फौज के साथ इलाहाबाद में डटे हैं। फैसला चाहे किसी के पक्ष में आये यूपी सरकार फिलहाल इस मामले में हाथ डालने से बच रही है क्योंकि माया नहीं चाहती है कि चुनावों से पहले फिर से किसान आंदोलन की आग में भड़के और सरकार को चुनावों में किसानों, निवेशकों के गुस्से का खामियाजा उठाना पड़े। देखा जाए तो जो जिम्मेदारी सरकार और जिम्मेदार ओहदों पर बैठे लोगों को निभानी चाहिए थी वो डयूटी मीडिया निभा रहा है। अगर माया ये सोच रही है कि उनके आंखें मूंदने से समस्या टल जाएगी तो वो खुशफहमी का शिकार हैं, जिसका खामियाजा उन्हें आगामी चुनावों में भुगतना होगा।

No comments:

Post a Comment