Friday, November 27, 2009

जहरीली होती नदियां

जहरीली होती नदियां

पर्यावरण प्रदूषण आज पूरे विशव  के समक्ष सबसे बड़ी समस्या बन कर उभरा है। परमाणु खतरे से भी बड़ा व भयानक खतरा पर्यावरण प्रदूषण का है। जल, वायु, पृथ्वी सभी बड़ी तेजी से प्रदूषण की चपेट में आ रहे हैं। प्रदूषण की सबसे बड़ी मार हमारे जल स्त्रोतों पर पड़ी है। जल प्रदूषण के कहर से असंख्य महामारिया उत्पन्न हो रही हैं। जल प्रदूषण का घातक प्रभाव पूरी मानव जाति पर दिखाई देने लगा है। बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण व नगरीकरण ने देष की लगभग हर छोटी बड़ी नदी को जहरीले व गंदे नाले के रूप में परिवर्तित कर दिया है सच्चाई यह है कि देश की जीवन धारा कहलाने वाली परम पवित्र नदियों का जल इतना अधिक प्रदूषित हो चुका है कि उनमें स्नान करना तो दूर उस जल से आचमन करना भी स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यन्त हानिकारक है। हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विकसित शोधन  प्रक्रियाओं के उपरांत भी जल का शुद्विकरण नहीं हो पा रहा है।

देश  की सबसे परम पवित्र नदी गंगा के बारे में अगर बात की जाए तो गंगा नदी की स्थिति भी बहुत नाजुक है। यह तो गोमुख से ही प्रदूषित होने लगी जोकि पर्यटन स्थल तथा पिकनिक केन्द्र के रूप में विकसित किया जा चुका है। वहां प्रदूषण नियन्त्रण की कोई व्यवस्था है ही नहीं। लोग वहां इधर-उधर मल-मूत्र त्यागते हैं, बोतलें, कागज, प्लास्टिक की थैलियां आदि कूड़ा-कचरा नदी में डाल देते हैं। गंगा में लगभग 15 करोड़ लीटर गंदा पानी प्रतिदिन गिरता है किन्तु जल-मल शोधन संयन्त्रों के द्वारा दस करोड़ लीटर पानी ही शोधित हो पाता है। इस शुद्विकरण के बाद भी पानी में बड़ी संख्या में आंत्र जीवाणु अभी भी देखे जा सकते है। इससे साफ है कि नदी का जल प्रदूषण बरकरार है।

हिन्दुओं में मान्यता है कि मृत्यु के उपरान्त शव को यदि गंगा के हवाले कर दिया जाय तो सीधा स्वर्ग मिलता है। इस धार्मिक विश्वास के अन्तर्गत हरिद्वार तथा वाराणसी (काशी) में प्रतिवर्ष करीब 50 हजार शवों को जलाया जाता है। दूर दराज के लोग भी यहां लाकर मृतकों का दाह संस्कार करते है। इन शवों को जलाने में 20 हजार टन लकड़ी और उससे बनने वाली राख करीब दो हजार टन होती है। यह भी गंगा जैसी पवित्र नदियों को अपवित्र (प्रदूषित) करने का प्रमुख कारण है। हिमालय की हिमाच्छादित चोटी से बंगाल की खाड़ी तक की यात्रा में स्वार्थी मानव ने गंगा को पूर्ण रूप से स्वच्छ (पवित्र) से पूर्ण रूप से मैली (अपवित्र) कर दिया है।

बनारस में  गंगा तट पर स्थित संकट मोचन निधि की प्रयोगशाला जो पूर्णतया सरकारी है, में प्रति सौ सी0सी0 पानी के आंत्र जीवाणुओं की संख्या 80 से 1 लाख 30 हजार के बीच पाई जाती है जो कि बड़ी से बड़ी महामारी फैलने की सूचक है जबकि सरकार बनारस और कानपुर में गंगा के साफ होने का दावा करती है। बनारस और कानपुर में औद्योगिक कचरा आज भी ज्यों का त्यों बहाया जाता है तो ऐसी स्थिति में गंगा साफ कैसे रह सकती है। गंगा तो अपने उद्गम स्थल से ही प्रदूषित होती हुई अपने किनारे बसे लगभग 115 नगरों की गन्दगी को लेकर चलती है। ऐसे में किसी क्षेत्र विशेष में गंगा को साफ कैसे रखा जा सकता है। यह केवल सरकार की नासमझी और उद्देश्यहीनता का नमूना है। साथ ही समाज में फैली निरक्षरता, अविद्या तथ अज्ञान एवं जनसंख्या विस्फोट ही इसके मुख्य कारण हैं।

राजधानी दिल्ली की जीवन धारा कही जाने वाली यमुना नदी के अस्तित्व पर संकट के घने बादल छाए हुए हैं। यमुनोत्री से निकलकर इलाहबाद (प्रयाग) तक की 1376 किलोमीटर की यात्रा में नदी जिस भी राज्य से होकर गुजरती है वहां लाखों  टन घरेलु व औद्योगिक कचरा उसके साथ बहा दिया जाता है। दिल्ली के सेंटर फॉर साइसं एंड इंवायरमेंट (सीएसई) ने पर्यावरण की स्थिति पर एक श्रृंखला प्रकाषित की है। दिल्ली के जल प्रदषण से संबंधित प्रकाशन होमिसाइड बाय पेस्टीसाइड में यमुना के जल प्रदूषण को लक्ष्य बनाया गया है। अध्ययन का निष्कर्ष है कि हरियाणा के खेतों में प्रयोग में लाए जा रहे जहरीले कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक एवं शहरों के घरेलु और औद्योगिक कचरे यमुना को दूषित कर रहे हैं।  पश्चमी यमुना नहर के दिल्ली पहुंचने तक हरियाणा के यमुनानगर, करनाल और पानीपत के अनेक उद्योगों के जहरीले कचरे की दोस्ती इस नगर के पानी के साथ हो जाती है। मसलन इस पानी में प्रतिदिन 8051 किलोग्राम सस्पेंडेड पदार्थ, 3288 बीओडी (बायोलोजिकल आक्सिजन डैमेज) 16245 सीओडी (केमिकल आकिस्जन डैमेज) की मात्रा मिलती रहती है जो पानी के उपभोगकत्र्ता के लिए घातक है।

यमुना दिल्ली की प्यास बुझाने का एकमात्र सबसे बड़ी स्त्रोत है। अनेक अध्ययनों से पता चलता है कि दिल्ली पहुंचते- पहुंचते यमुना जहरीली हो जाती है लेकिन हम फिर भी यमुना को नहीं छोड़ते। दिल्ली में वजीराबाद बांध से इंद्रप्रस्थ बांध तक लगभग 18 अधिकृत गंदे नाले यमुना में हर रोज दिल्ली के लोगों का मल और गंदा डाल रहे हैं। सीएसई के अध्ययन के अनुसार कोई 1800 मिलियन लीटर जहरीला गंदा पानी प्रतिदिन यमुना में बहाया जाता है। विडंबना यह कि दिल्ली के हिस्से में यमुना का केवल 2 प्रतिषत भाग ही रहता है। जबकि दिल्ली यमुना को 71 प्रतिशत गंदा पानी देकर सबसे ज्यादा प्रदूषित करती है। यमुना दिल्ली के 93045 छोटे बड़े उद्योगों के कचड़ों को झेलती है।

यमुना को सबसे ज्यादा पीड़ा दिल्ली की मलिन बस्तियां पहुंचा रही हैं। खासतौर से वे जो इसके किनारे बसी हैं। दिल्ली में यूं तो कोई छह लाख झुग्गियां हैं जिनमें 30 लाख लोग रहते हैं, पर इनमें से तीन लाख लोग ठीक यमुना के किनारे बसे हैं। ये अपनी घरेलु गंदगी सीधे यमुना को भेंट चढ़ा देते हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रपट के अनुसार दिल्ली की 45 फीसदी घरेलु गंदगी बिना किसी उपचार के सीधे यमुना के हवाले कर दी जाती है।

उत्तर प्रदेष की राजधानी लखनऊ गोमती के किनारे बसी है। आदि गंगा कही जाने वाली गोमती भी प्रदूषण की मार को झेल रही है। पीलीभीत जनपद के माधोटाण्डा ग्राम के गोमत ताल से निकलकर लगभग 960 किमी प्रवाह के बाद गाजीपुर जिले के औडियार नामक गांव के पास गंगा नदी में मिल जाती है। अपने इस लम्बे प्रवाह के दौरान नदी षाहजहांपुर, सीतापुर, हरदोई, बाराबंकी, सुल्तानपुर, जौनपुर, होती हुयी प्रवाहित होती है। कथना, सरायन, सई एवं रेठ आदि इसकी सहायक नदियां है। गोमती नदी के जल का प्रयोग लगभग सभी प्रयोजनों हेतु किया जाता है जिसमें मुख्य रूप से पीने हेतु, सिंचाई हेतु, औद्योगिक प्रयोजनों हेतु तथा मत्स्य पालन आदि है।

उद्योगों का कचरा और घरेलु गंदा जल, प्रदूषण का मुख्य कारण है। खेतों से सिंचाई के बाद निकला पानी तथा भूमि का कटाव भी जल की आवशयकता और वास्तविक खपत में बहुत अंतर होता है। अनुमान है कि जितने जल का उपयोग किया जाता है उसके मात्र 20 प्रतिषत का ही खपत हो पाता है और षेष 80 प्रतिशत भाग सारा कचरा समेटे बाहर आ जाता है। इसे ही अपशिष्ट जल या मल-जल कहा जाता है और गोमती नदी में मिलकर उसे प्रदूषित करता है। देष की अन्य नदियों की तरह गोमती नदी में प्रदूषण का मुख्य कारण औद्योगिक निस्त्राव नहीं है। उद्योग धंधे तो केवल 20 प्रतिशत प्रदूषण के लिये जिम्मेदार हैं। षेष 80 प्रतिशत मल-जल और शहरी कचरे के कारण होता है। शहरी कचरे या मल जल में मुख्य रूप से कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो पानी में मिलने पर आक्सीकृत होते हैं। इस आक्सीकरण क्रिया में आक्सीजन की बड़ी मात्रा में खपत होती है। चूंकि पानी में घुलित आक्सीजन की मात्रा सीमित होती है अतः पानी आक्सीजन विहीन हो जाता है तथा उसमें रहने वाले जीव जन्तुओं को जीना दूभर हो जाता है। मल-जल में कार्बनिक पदार्थों के अलावा सूक्ष्म जीव भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हें, जिनमें कुछ रोगाणु भी होते हैं। इन रोगाणुओं की उपस्थिति में यह पानी उपयोग लायक नहीं रह जाता है। कई बार लोग अनभिज्ञता के कारण ऐसे पानी का उपयोग कर लेते हैं एवं रोग ग्रस्त हो जाते हैं। कई बार तो यह महामारी का रूप भी ले लेता है। एक तरफ नदियों का अत्यधिक उपयोग दूसरी तरफ अनुपचारित मल-जल के निर्बाध गति से नदी में मिलने के कारण प्रदूषण की समस्या जटिल हो गयी है।

हरित क्रांति से कृषि उत्पादन तो बढ़ाया है परन्तु कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों की तथा रासायनिक पदार्थों का उपयोग भी बढ़ा है। कीटनाशकों के अधिक व अनुचित प्रयोग के कारण भी जल प्रदूषित हो रहा है क्योंकि रासायनिक कारखानों का अविशष्ट नदियों में प्रवाहित कर नदियों को प्रदूषित किया जा रहा है। जल में क्रमशः रासायनिक प्रदूषण बढ़ रहा है। जल में डिटरजेन्ट, साल्वेन्ट, साइनाइड, हैवीमेटल, कार्बनिक रसायन, ब्लीचिंग पदार्थ, डाई तथा अनेक प्रकार के रसायन मिलते हैं जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक होते हैं। गंगा दुनिया की दस बड़ी और प्रमुख नदियों में से एक है। रिपोर्ट के अनुसार यह नदी कोई 50 करोड़ लोगों को पेयजल, खाद्य, वनस्पति और हराभरा वातावरण देती है सन् 2030 के बाद धीरे-धीरे इन सबका क्षय होने लगेगा। रिपोर्ट में व्यक्त की गई अंशकाओं पर यकीन करें तो आने वाले वर्षों में भारत को अन्न-जल के संकट से जूझने के लिए तैयार रहना चाहिए।

देश में नदी प्रदूषण की समस्या कोई नयी नहीं है और न ही यह बात सरकार अथवा जनसाधारण से छिपी है। नदी जल प्रदूषण निवारण के नाम पर अब तक कई योजनाएं बनी हैं, करोड़ों रूपये भी खर्च हो चुके हैं परन्तु नदियों का प्रदूषण अभी तक दूर नहीं किया जा सका है। गंगा, जमुना, गोमती, कावेरी, नर्मदा, चेलियार, साबरमती, हुगली, पेरियार, दामोदर आदि अधिकांश नदियां आज भी प्रदूषित हैं और प्रदूषण लगातार गहराता जा रहा है। पिछले दिनों इस सम्बन्ध में सामने आई वैज्ञानिको की रिपोर्ट देखकर यही लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब गंगा और यमुना की स्थिति आस्टेªलिया की हडसन नदी जैसी ही हो जाएगी जिसके दोनों किनारों पर वहां की सरकार ने बोर्ड लगाकर यह चेतावनी लिखी है कि ‘पानी जहरीला है, इसे न छुएं।’ उस पानी से बचने के लिए नदी के किनारों पर बाढ़ लगानी पड़ी है। हमारे यहां नदी जल प्रदूषण की भयावह स्थिति होने के बावजूद इसका कोई तत्काल समाधान नहीं दीख रहा है। इस मामले में सरकारी कार्य प्रणाली महज औपचारिकता ही दर्शाती है।


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