Monday, November 30, 2009

.....जब मोबाइल नहीं था



...........शीर्षक पढ़कर कुछ अटपटा जरूर लग रहा होगा। वो जमाना कब का बीत चुका जब इक्का दुक्का घरों में फोन होता था और फोन रखना रसूख की बात समझा जाता था। पिछले दो दशकों में आई सूचना क्रांति के बयार ने देश के हर आमो खास को मोबाइल थमा दिया है। घर के एक कोने में रखा फोन अब बीते जमाने की बात हो चुका है। और भारी-भरकम फोन की जगह छोटे व आकर्षक मोबाइल फोन ने ले ली है। टेलीफोन के चलन से पहले सारा प्यार, व्यवहार पत्रों के माध्यम से ही होता था। लैण्ड लाइन फोन और चिटठी के जमाने में जो आनंद रोमांच, अपनापन व उत्सुकता थी वो मोबाइल और इन्टरनेट के युग में शेष नहीं है। अब कोई कान या आंख डाकिए की प्रतीक्षा नहीं करती है। सारी दुनिया मोबाइल प्रेम में मगन है।

मोबाइल ने हमारी जिंदगी में कई बदलाव किये हैं। वो बदलाव हमारे लिए अच्छे हैं या बुरे इसका निर्णय स्वयं ही करना होगा। अब हर आदमी की पहुंच आपके बेडरूम तक हो चुकी है। मोबाइल इतना जरूरी हो चुका है कि आप एक मिनट भी मोबाइल से दूर होना नहीं चाहते हैं। आप दुनिया के किसी भी कोने में, किसी भी स्थिति में हो केवल दस डिजिट का नम्बर मिलाकर आपसे संवाद स्थापित किया जा सकता है। मोबाइल की वजह से आपकी व्यक्तिगत जिंदगी लगभग खत्म हो चकी है। जीवन में एकांत व सुख के चार पल ढूंढ पाना आसान नहीं है। क्योंकि कहीं भी कभी भी आपके मोबाइल की रिंग बज सकती है।

मोबाइल ने हमारा आपका दिन रात का सुकून छीन लिया है। घर में लैण्ड लाइन फोन था तो बातें इत्मिनान से होती थी......... आराम से सोफे पर बैठकर। मोबाइल ने वो इत्मिनान, सुकून व आजादी हमसे छीन ली है। टाइम-बेटाइम जब मन में आए मोबाइल पर बात करना षुरू कर दो। डाइनिंग टेबुल, ड्रांइग रूम, बेड रूम, टायलेट कहीं पर भी आपके मोबाइल की घंटी घनघना सकती है। न दिन का चैन न रात को आराम। मोबाइल ने हम सब की व्यक्तिगत जिंदगी में इतनी घुसपैठ कर दी है कि पूजा करते समय मंदिर में, किसी शोक सभा या फिर श्मशान घाट में बेधड़क आपके मोबाइल की रिंग टोन बज सकती है। आखिकर मोबाइल को क्या मालूम कि आप कहां है और किस दशा में हैं।

पहले हम खाना खाते समय केवल टीवी देखने की बुरी आदत थी। अब आंखें टीवी पर होती हैं और मोबाइल कान से चिपका रहता है। दिल दिमाग व अन्य इंद्रीयों का जीवन में कोई तालमेल ही नहीं बचा है। क्या वास्तव में ही हमारी लाइफ इतनी बिजी व फास्ट हो गई है या फिर काम इतना अधिक हो गया है कि हम लोग अपनी शारीरिक अवस्था व स्वास्थ्य को दरकिनार कर किसी अलग दुनिया में मस्त हैं। सीधी सरल जिंदगी को एक छोटे से मोबाइल ने इतना तनाव पूर्ण बना दिया है कि अच्छा भला आदमी मशीन बनकर रह गया है।

पहले कभी कभार बातें होती थी तो रिश्तों में नयापन ताजगी व प्यार बना रहता था। अब मोबाइल कनेक्टिविटी के चलते पल पल की जानकारी एक दूसरे को होती रहती है। बातें तो बहुत होती हैं लेकिन उससे मिठास, अपनापन व प्यार कहीं गायब हो चुका है। आज दिलों में इतनी दूरी हो चुकी है कि जिन्हे पाट पाना शायद मुमकिन नहीं है। ये नयी पीढ़ी व उम्र की बातें हैं। हर उम्र व पेशे का आदमी कान से मोबाइल चिपकाए घण्टों मोबाइल पर बिजी है। पता नहीं ऐसी कौन सी बातें हैं जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं।

मोबाइल ने हमें झूठ बोलना भी बखूबी सिखाया है। आफिस में बैठा एक्जिक्यूटिव हो, दुकान में बैठा व्यापारी हो, स्कूल कालेज जाते बच्चे हो या आराम से घर में बैठा हम आप सब के सब धडल्ले से झूठ बोलते हैं। मोबाइल वाले होते कहीं हैं लेकिन फोन करने वाले को कहीं और बताकर टरका देते हैं। ऐसा करते समय हमें इस बात का जरा भी एहसास नहीं होता झूठ बोलने की बुरी आदत हम अपने पल्ले बांधते जा रहे हैं।


मोबाइल ईजाद होने से पहले भी लोग बाहर बिजनेस, पढ़ाई या अन्य कामों से आते जाते थे। तब भी औरतें, बच्चे अकेले घरों से बाहर निकलती थे। इस एक दशक  में देश के जनमानस के भीतर ये भावना इस कदर जम गई है कि मोबाइल के बिना बच्चे, महिलाएं व बुजुर्ग सब अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं । मोबाइलने मानसिक रूप् से हमें कमजोर किया है।

मोबाइल ने एक तरफ झूठ बोलने की आदत डालकर जिम्मेदारियों से भागने का रास्ता सुझाया है,। वहीं इसकी वजह से लोगों पर जिम्मेदारियों का बोझ कई गुना ज्यादा बढ़ा है। एक तरह से इसने जिम्मेदारियों का चरित्र ही बदल दिया है। स्थिति यह है कि किसी जिम्मेदार पद पर बैठा व्यक्ति मोबाइल फोन के मार्फत चैबीसों घंटे डयूटी पर रहता है। सनियर हो या जूनियर जिसकी भी जरूरत महसूस हो, वे फोन की घंटी बजा देता है। बेशक आप टॉयलेट में हों या सपनों में, मोबाइल हर जगह आपकों पकड़ ही लेता है। इसके चलते खुद के लिए व परिवार के लिए निर्बाध समय निकाल पाना लगातार मुश्किल होता जा रहा है। कई बार तो गृहकलह का कारण भी बनता है मोबाइल।

मोबाइल ने रिश्तो को संवेदनहीन भी किया है। मोबाइल की वजह से आजकल लोगों ने रिश्तदारों के यहां आना-जाना कम कर दिया है और मोबाइल के जरिये ही वे एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं। त्योहारों पर लाखों लोग एस0एम0एस0 भेजकर सगे संबंधियों को बधाई देते हैं। यह तथ्य इस बात का प्रमाण है कि मोबाइल ने हमारे संबंधों को औपचारिक बना दिया है। जो काम पहले एक दूसरे से मिलने पर ही पूरे होता था, आज उसे मोबाइल फोन अंजाम दे रहे हैं। इस तरह से देखें, तो मोबाइल संबंधों को औपचारिक बनाकर सामाजिक ढांचे को कमजोर करने का काम कर रहा है।

मोबाइल युग में अब दिलो दिमाग एक मिनट भी खाली नहीं रहता है। हमेशा कहीं न कहीं मोबाइल की घंटी बजती ही रहती है। मोबाइल की वजह से सब इतनी हड़बड़ी में हैं कि पैदल चलते हुए, स्कूटर, मोटरसाइकिल और कार चलाते समय कान से मोबाइल चिपका रहता हैं। ऐसा लगता है मानो अब शायद कभी रूकना ही नहीं है। मोबाइल नहीं था तो घर में, दफतर में सुरक्षित तरीके से वार्तालाप होता था। चलते फिरते बात करने की वजह से कई बार गंभीर दुर्घटना घट जाती हैं लेकिन इन बातों पर गौर करने का वक्त किसी के पास नहीं है।

मोबाइल का सबसे अधिक असर बच्चों व युवाओं पर पड़ रहा है। युवा हर वक्त मोबाइल में डूबे रहते हैं। मोबाइल की वजह से बच्चों व युवाओं का कैरियर प्रभावित हो रहा है। पढ़ाई के वक्त दोस्तों से बातचीत करना या फिर एसएमएस खेलना युवाओं का सबसे प्यारा शगल है। युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मोबाइल कंपनिया पूरी रात फ्री बात करने की सुविधा भी मुहैया करवाती हैं। ऐसे आफरों के चक्कर में पड़कर युवा अपना बेशकीमती वक्त बर्बाद कर रहे हैं वहीं रात रात भर जागकर घण्टों बातचीत करने से युवाओं का स्वास्थ्य भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।

इन सब बुराईयों व खामियों के बावजूद मोबाइल के सकारात्मक पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अपने सगे संबंधियों से दूर रहने के बावजूद मोबाइल फोन इस दूरी को पाटने में सहायक सिद्व हुआ है। मोबाइल उपयोग करने वाले व्यक्ति जब चाहें, आपस में संपर्क कर अपने अकेलेपन को दूर कर सकते हैं। मोबाइल रखने वाला व्यक्ति विषम परिस्थितियों में अपने किसी साथी से संपर्क कर सकता है। विशेषतया महानगरों में लोगों को मानसिक सुरक्षा प्रदान करने में सहायक है। आज कोई व्यक्ति कहीं भी चला जाये, वह हर समय मोबाइल के जरिए संपर्क में रह सकता है। वह एक साथ कई काम कर लेता है। इसके अलावा मोबाइल फोन ने लोगों की कामचोर प्रवृत्ति पर भी अंकुश लगाने का काम किया है। अब तक लोग सन्देश न मिलने का बहाना बनाकर अपनी जिम्मेदारी से बचने का रास्ता निकाल लेते थे लेकिन अब मोबाइल फोन घर के तहखाने तक भी सन्देश पहुंचाकर लोगों को कामचोरी नहीं करने देता।

मोबाइल फोन का इस्तेमाल निश्चित रूप से अधिकाधिक फायदा उठाने के लिए ही है लेकिन आजकल इस फायदे पर नकारात्मक पहलू हावी हो गया है। आज मोबाइल उपभोक्ता बड़ी तेजी से कई कई ऐसी आदतों का शिकार हो रहे हैं, जो भविष्य में काफी खतरनाक साबित हो सकती हैं। खासकर, लोगों के चरित्र पर इसका गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है वहीं मोबाइल से निकलने वाली विकरणें अनेक असाध्य रोगों को भी जन्म दे सकती है अनेक अनुसंधानों से ये बात स्पष्ट हो चुकी हैं।

.......सच जब मोवाइल नहीं था तब हमारे आपके जीवन में शांति थी, सुकून था, सच्चाई थी, प्रेम था, मिठास थी, रिश्तों में गहरा अपनापन था.........बदलती दुनिया के साथ चलने में कोई बुराई नहीं है। जमाना बदल रहा है हमें भी उसी हिसाब से चलना होगा लेकिन विकास की क्या कीमत हमें चुकानी पड़ रही है ये तो सोचना ही होगा।


1 comment:

  1. दिल तो बच्चा है जी-2
    थोड़ा कच्चा है जी

    -आपके साथ गुनगुना रहे हैं.

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