Tuesday, November 24, 2009

जब कचरे की लूट होगी

...........जब कचरे की लूट होगी
शीर्षक पढ़कर आपको लग रहा होगा कि क्या कहा व लिखा जा रहा है। और हकीकत भी यही है कि कचरे की लूट होगी इस बात को पचा पाना आज तारीख में कोई आसान बात नही है। लेकिन जिस तादाद में देष में कचरे के ढेर बढ़ते जा रहे हैं उसी के समांतार कचरे से निपटने के लिए भी उपाय भी सोचे जा रहे है। कचरा प्रबंधन वर्तमान में सबसे अधिक चिंता व शोध का विषय है। दुनिया भर के वैज्ञानिक, पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरण प्रेमी कचरा प्रबंधन के विभिन्न उपाय ढूंढने में व्यस्त है। कचरा प्रबंधन की कोई सुदृढ़ योजना फिलहाल हमारे पास नहीं है अभी इस संबंध में हो रहे शोध भी अपने प्रांरभिक चरण में है। बाजार में उपलब्ध विदेशी  व देशी तकनीकों को अपना कुछ छोटे मोटे नुस्खे अमल में भी लाए जा रहे हैं। जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं जिससे भविष्य के लिए संभावनाएं जगती हैं। जिस तेजी इस दिशा में शोध  हो रहा है उससे तो ऐसा ही लगता है कि आने वाले समय में हमारे हाथों में कचरे के विशाल अंबार से निपटने का सालिड फार्मूला होगा। और जब हम कचरे को सही उपयोग करना सीख जाएंगे या हमें ये पता चल जाएगा कि हम जिस चीज को बेकार व कूड़ा समझ कर यूं ही फेंक  रहे है उसकी बाजार में कमर्शिअल वैल्यु है उस दिन हम घर से बाहर कचरा फेंकने से पहले एक बार जरूर सोचेंगे और अगर किसी को कचरे दे गए भी तो उसके बदले पैसा वसूलना नहीं भूलेंगे। आज ये बात मजाक लग सकती है लेकिन वो समय भी बहुत जल्द आने वाला है जब देष में सोने चांदी की जगह कचरे की लूट होगी और कचरे बहुमूल्य समझा जाएगा।

नोएडा स्थित ईकोवेस्ट मैनेजमेण्ट कम्पनी नोएडा में करीब 18 हजार घरों की गंदगी समेटती है। एकत्र किए गए कचरे को खाद में तब्दील करके उसे खुले बाजार में बेचकर कमाई करती है। घरों की गंदगी के अलावा अब उनके क्लाइंटस में कुछ व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को कूड़ा करकट भी षामिल हो गया है। ईकोवेस्ट के जनक व प्रबंध निदेषक मानिक थापर बताते हैं कि सेंटर स्टेज माल और हल्दीराम के अलावा हम कुछ छोटे छोटे रेस्टोरेंट का कूड़ा भी जमा करते हैं। कमर्षियल वेस्ट के अलावा जल्द ही हम बायो मेडिकल वेस्ट की तरफ जाएंगे। इस दिषा में असम में कुछ काम आगे बढ़ा है। लेकिन नोएडा में पिछले कुछ दिनों में उन घरों की तादाद कम हुई है जहां से ईकोवाइस वेस्ट कंपनी गार्बेज इकटठा करती थी। थापर इसकी एक दिलचस्प वजह बताते हैं, ‘लोगों ने कूड़ा उठाने के लिए हमसे ही पैसे मांगने षुरू कर दिए थे। इसलिए हमने कुछ घर छोड़ दिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि काम थम गया है। अब हमारी कमर्षियल लिस्ट बढ़ती जा रही है। विस्तार के नए मोर्चे खुल रहे हैं। थापर के काम से प्रभावित होकर दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल तेजेन्द्र खन्ना ने उन्हें एमसीडी की साॅलिड वेस्ट मैनेजमेंट कमेटी का सलाहकार बनाया है। थापर के मुताबिक दिल्ली में गार्बेज मैनेजमंेट की खातिर कुछ प्रोजेक्ट पाइप लाइन में हैं जिन पर जल्द कुछ फाइनल होने वाला है। ईकोवेस्ट कंपनी आने वाले समय में आगरा, जयपुर और केरल में भी यही काम करने वाली है। ईकोवेस्ट के अलावा कुछ समाजसेवी संस्थाएं व अन्य कंपनिया भी कूड़े से खाद बनाने का काम नोएडा व आसपास के इलाकों मे कर रही है।

घरो में हमेषा बेकार समझे जाने वाले सब्जियों के छिलके व फल-पत्तियों का भी अब कारगर इस्तेमाल किया जा सकता है। इन अपषिष्ट पदार्थों से घरेलु गैस बनायी जा सकती है। इस दिषा में लखनऊ यूनिवेर्सिटी के अक्षय ऊर्जा पाठयक्रम की छात्रा ने शोध कर गतिषील बायोगैस संयंत्र बनाया है, जिसे कुछ समय बाद बाजार में उतारने की तैयारी चल रही है। पाठय्क्रम की समन्वयक डा0 ऊषा वाजपेयी के मुताबिक घरेलु अपषिष्ट को बाये गैस संयंत्र में डालने पर उसमें एनारोविक बैक्टीरिया उत्पन्न होते हैं। इससे मीथेन गैस का निर्माण होता हे। उन्होंने इस गैस के निर्माण में किसी भी तरह के नुकसान व दुर्गन्ध की आशंका  से इनकार किया है।

प्लास्टिक कचरा पर्यावरण को प्रदूषित करने में सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है, किंतु चेन्नई स्थित तेलाम्मल इंजीनियरिंग कालेज के छात्रों ने कुछ विषिष्ट रासायनिक प्रक्रियाओं के बाद प्लास्टिक कचरे से पेट्रोल प्राप्त करने का दावा किया है। उनके अनुसार जब प्लास्टिक के कचरे को 400 डिग्री सेन्टीग्रेट तक गर्म किया जाता है तो आसवन द्वारा उससे कच्चा माल यानी तेल प्राप्त होता है। उसी प्रकार नागपुर में रायसीना इंजीनियरिंग कालेज के रसायन विभाग में चमत्कारी सफलता प्राप्त हुई है। यहां के प्रयोगकत्र्ताओं ने एक किलो प्लास्टिक कचरे से लगभग पौने लीटर पेट्रोल निकाल कर इंडियन आयल कारोपोरेषन के वैज्ञानिकों को सकते में डाल दिया। इसके लिए उन्होंने प्लास्टिक को कोयला और अब तक गुप्त रखे रासायनिक पदार्थ के साथ गर्म किया। इसी श्रृंखला में महाराष्ट्र सरकार और जड़गांवकर यूनिट, वेस्ट प्लास्टिक मैनजमेंट एण्ड रिसर्च कम्पनी द्वारा संयुक्त रूप से मुंबई और नागपुर में एक परियोजना की षुरूआत की गयी है जिसमें प्लास्टिक के कचरे से हाइड्रोकार्बन बनाया जायेगा।

अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रीत्व काल में उत्तर प्रदेष की राजधानी लखनऊ में वर्ष 2003 मंे कचरे से बिजली बनाने का संयंत्र लगाया गया था। अपषिष्ट से विद्युत उत्पादन की इस परियोजना के अनुसार बूम (बिल्ड ओर आपरेट मेन्टेन) के आधार पर ठोस अपषिष्टों (कूड़े) से प्रतिदिन 5 मेगाावाट विद्युत उत्पादन व 135 टन बायोफर्टिलाइजर उत्पादित करने वाली इस परियोजना की स्थापना व संयंत्र संचालन के लिए नगर निगम ने एषिया बायो एनर्जी लिमिटेड से अनुबंध किया था लेकिन सरकारी कार्यावाहियों व प्रषासनिक फेर में पड़कर वाजपेयी जी की महत्वाकांक्षी योजना सफल नहीं हो पाई। अगर कूड़े से बिजली बनाने की योजना सफल हो जाती तो विद्युत उत्पादन एवं फर्टिलाइजलर से प्रतिवर्ष 60 लाख की आय होनी थी वहीं केन्द्र से भी प्रोत्साहन धनराषि के रूप में 75 लाख रूप्ये प्राप्त होते। एषिया बायोएनर्जी के योजना छोड़कर जाने के बाद अन्य निजी संस्थ आरसेल व मुम्बई की एक अन्य संस्था प्लांट टेक ओवर करने के लिए आगे आयी। नगर निगम से जैविक कूड़ा मुहैया न करा पाने पर उन्होंने भी इस योजना से अपने हाथ खींच लिये।

वर्तमान में लखनऊ व आगरा में कूड़े की समस्या से निजात पाने के लिए कम्पोस्ट खाद बनाने का कारखाना स्थापित किया जायेगा। षहरी विकास मंत्रालय ने लखनऊ व आगरा में ठोस अपषिष्ट प्रबंधन सालिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए तैयार की गयी 80.23 करोड़ की दो अलग अलग परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान कर दी है। लखनऊ के लिए 47.23 करोड़ रूपये व आगरा के लिए 33 करोड़ की परियोजना को मंजूरी मिली है। इसके तहत निजी कंपनी के कर्मचारी मोहल्ला एवं कालोनीवार कूड़ा एकत्र करेंगे और फिर उसे ढके हुए वाहनों के जरिये ले जायेंगे। गलियों से इकट्ठा होने वाले कूड़े को रखने के लिए भी दो तरह के बड़े कूड़ेदान चिन्हित स्थानों पर रख जायेंगे। जबकि गैर जैविक पदार्थों वाले कूड़े से निचली जमीन की पटाई की जायेगी। जवाहरलाल नेहरू नगरीय नवीकरण मिषन के तहत उक्त परियोजना मंजूर की गयी है। इसके मुताबिक कूड़ा उठाने से लेकर उसे निर्धारित स्थान पर ले जाने का काम चूंकि गैर सरकारी संस्था को सौंपा जा रहा है। इसलिए परियोजना के मुताबिक प्रत्येक गृह स्वामी की आय के हिसाब से पांच रूप्ये से लेकर पचास रूप्ये तक मासिक षुल्क वसूल किया जायेगा। लखनऊ में कम्पोस्ट बनाने का कारखाना हरदोई रोड पर बायोइनर्जी प्लांट के पास तथा आगरा में यह षाहदरा के नजदीक उपलब्ध जमीन पर स्थापित किया जायेगा। कूड़ा डम्पिंग ग्राउण्ड के लिए लखनऊ नगर निगम ने हरदोई रोड स्थित बरावनकलां गांव में 121 एकड़ जमीन को चिन्हित किया है।

गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत मंत्रालय देष में कूड़े-कचरे से ऊर्जा उत्पादन परियोजनाओं को बढ़ावा दे रहा है। यह मंत्रालय प्रदर्षनियां लगाकर लोगों को जैव पदार्थों से ज्यादा से ज्यादा मात्रा में मीथेन बनाने की प्रक्रिया दिखाता है। इन प्रदर्षनियों का एक अन्य उद्देष्य विभिन्न प्रकार के कूड़े कचरे से ऊर्जा बनाने के लिए विविध प्रौद्योगिकियों का भी प्रदर्षन करना है जिससे बिजली का उत्पादन हो सके। पंजाब मंे लुधियाना के पास हीबोवाल स्थित कूड़े कचरे से ऊर्जा उत्पादन संयंत्र एक ऐसा ही प्रयोग है। वहंा पषुओं के गोबर से एक मेगावाट बिजली और जैविक खाद तैयार होता है। मंत्रालय द्वारा स्थापित इस संयंत्र को पंजाब ऊर्जा विकास एजेंसी चला रहा है। यह ढाई एकड़ मंे फैला हुआ है। इसके परिसर में 500 गोषालाएं प्रतिदिन 2500 टन गोबर इस संयंत्र को उपलब्ध कराती हैं। अपनी जरूरतों को पूरा करने के बाद बची हुई बिजली राज्य विद्युत ग्रिड को उपलब्ध करा दी जाती है। बिजली बनाने के अलावा संयंत्र प्रतिदिन 50 टन जैविक खाद भी तैयार करता है। 13 करोड़ रूपये की लागत से बना यह संयंत्र दिसंबर 2004 में षुरू किया गया था। राज्य विद्युत बोर्ड ने बिजली के जो षुल्क निर्धारित किया है उसके अनुसार यह संयंत्र आर्थिक रूप से उपयोगी सिद्व हुआ है। खाद के रूप् में गोबर के इस्तेमाल से यह आय भी अर्जित कर रहा है। इस संयंत्र का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे ग्रीन हाऊस गैस बहुत कम निकलती है। संयंत्र से ताप कम निकलने के कारण वातावरण गर्म नहीं होता। संयंत्र ने लगभग 100 लोगों को रोजगार दिया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की समय-समय पर संस्थान के कार्यों की निगरानी करता रहता है।

मध्य प्रदेष की सतपुड़ा पहाड़ियों में बसे कसई गांव में गैसीफायर और जेनरेटर लगाकर हर रोज 20 किलोवाट बिजली पैदा की जा रही है। घरों में ही नहीं, गली में, स्कूल में, आटा चक्की और ठंडे दूध गोदामों के लिए भी बिजली मिल रही है। पानी का पंप भी चलाया जा रहा है। यहां अपारंपरिक ऊर्जा मंत्रालय की मदद से 16 लाख रूपये मंे दो बायोमास गैसीफायर और एक सामुदायिक बायोगैस प्लांट लगाया गया है। हर परिवार से हर महीने 70 रूपये नकद और 50 रूपये की घास फूस और डंडियां, इस तरह 120 रूपये का अंषदान लिया गया। बायोमास गैसीफायर की क्षमता 10-10 किलोवाट की है। बिजली मिलने पर कसई गांव में दूरदर्षन और रेडियो का ज्ञानरंजन (इनफोटेनमंेट) लहराने लगा है। एक गांव की आवष्यकता 10 हैक्टेयर जमीन में उगी झाडियों और अन्य पौधोे तथा कृषि छीजन से पूरी की जा सकती है। अपने आप उग आनेवाले बेहया, आग, गाजर घास, जलकुंभी और अन्य खरपतवार इत्यादि सुखाकर बायोमास ऊर्जा के काम में लाये जा सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में 60 करोड़ टन कृषि छीजन पैदा होती है। इससे 79000 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है। इस क्षेत्र में अब निजी कंपनियां भी आने लगी हैं। कर्नाटक के मांडिया जिले के 48 गांवों के 120000 परिवारों को बायोमास ऊर्जा से पैदा बिजली देना षुरू कर दिया गया है। इसका साढ़े चार मेगावाट का बिजलीघर बायोमास से बिजली बनाने का भारत का सबसे बड़ा संयंत्र है। आज भी 60 प्रतिषत देहाती घरों में रोषनी के लिए केरोसिन यानी मिट्टी का तेल जलाया जाता है। 18 करोड़ टन के करीब बायोमास (लकड़ी और टहनियां) चूल्हों में झोंक दिया जाता है। दोनों में धुआं पैदा करते हैं। हर साल दुनिया में घरों में होने वाले वायु प्रदूषण से लगभग 16 लाख मौतें होती हैं। बायोमास ऊर्जा जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोत विष्व को इस विडंबना से मुक्ति दिला सकते हैं।

विदेषों में कचरे के उपयोग से बड़े बड़े उ़द्योग लगाए जा रहे हैं। पुराने रबर, पानी की खाली बोतले, कांच, कागज, कपड़ा, प्लास्टिक, फल सब्जी के छिलके उपयेग में लाए जा रहे हैं। विदेषों में रबर के कचरे से निपटने के लिए रबर को गला कर रबर षीट को तैयार किया जाता है। और बाद में इसी रबर षीट से देष भर की सड़कों को लेमिनेट किया जाता है। हमारे देष में भी लाखांे करोड़ों दुपहिया व चार पहियों वाहनों की भरमार है। और रबर के पुराने टायरों का विषाल कचरा हमारे यहां उपलब्ध हैं और जिस दिन कंपनियां इस दिषा में काम करने लगेगी। उस दिन कचरे से कमाई तो होगी ही वहीं कचरे के प्रबंध भी मुफत हो जाएगा।

अभी हाल ही में दिल्ली में कूड़े प्रबंधन की जिम्मेदारी एससीडी ने प्राईवेट कंपनी को सौंपने का फेंसला लिया है। बड़ी कंपनियों के मैदान में आ जाने से कूड़ा बीनने वालों की रोजी रोटी का सवाल उठ खड़ा हुआ है। इसका सीधा असर राष्ट्रीय राजधानी में दो लाख कूड़ा बीनने वालों की जीविका पर पड़ेगा। कंपनियां कूड़ा प्रबंधन करेंगी जिससे इनका रोजगार छिन जाएगा। हैजार्ड सेन्टर के निदेषक डूनू राय ने बताया कि  में हर रोज करीब आठ हजार टन कूड़ा निकलता है जो वर्ष 2020 तक 20 या 22 हजार टन हो जाएगा। षहर के दो लाख कूड़ा बीनने वाले हर दिन लगभग 20 से 25 फीसदी तक गंदगी बटोर लेते हैं। लेकिन अगर निजी कंपनियां इस व्यवसाय में उतरती हैं तो इन गरीबों का क्या होगा? इनके लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था बाल विकास धरा के अध्यक्ष देवेन्द्र कुमार बराल ने नाराजगी जताते हुए कहा कि इन निर्बलों की मदद करने के बजाय निजी कंपनियां इनकी रोजी-रोटी छीनना चाहती हैं। दरअसल सवाल कूड़ा बीनने का नहीं है असलियत यह है कि कूड़ा अपने आप में कमाई व ऊर्जा का बड़ा स्त्रोत है। ये बात सरकार को भी समझ आ चुकी है इसलिए धीरे धीरे ही सही लगभग हर बड़े षहर में कचरा प्रबंधन के लिए प्राईवेट कंपनियों में होड़ मची है। कचरे में इन कंपनियों को भविष्य नजर आने लगा है।

No comments:

Post a Comment