Wednesday, July 20, 2011

पुनिया साहब, यूपी के बाहर भी दलित रहते हैं

यूपी के बाराबंकी से कांग्रेसी सांसद एवं पूर्व नौकरशाह पन्ना लाल पुनिया को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष बनाकर केंद्र सरकार ने उनके कंधों पर भारी जिम्मेदारी डाल रखी है। लेकिन एससी आयोग का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बावजूद पुनिया का सारा ध्यान और राजनीति केवल यूपी में मायावती सरकार को घेरने, यूपी में कांग्रेस की खोई जमीन वापिस पाने तथा दलितों का सच्चा मसीहा बनने के इर्द-गिर्द ही मंडराती है। किसी जमाने में मायावती के सबसे विष्वस्त अफसर रहे पुनिया आज अपनी पुरानी लेडी बॉस की नींद हराम किये हुये हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि पुनिया जिस पद को आसीन हैं उस का कार्यक्षेत्र संपूर्ण भारत है या फिर केवल यूपी। क्यों पुनिया को यूपी से बाहर दलितों पर होने वाले अत्याचार, शोषण, अन्याय की घटनाएं दिखाई नहीं देती हैं। आखिरकर पुनिया एक संवैधानिक पद का निर्वाहन कर रहे हैं ऐसे में उनका एक विशुद्व राजनीतिज्ञ की भांति आचरण गंभीर सवाल पैदा करता है। पुनिया की इस दलित और वोट बैंक की राजनीति के चलते अनुसूचित जाति आयोग का काम काज और गरिमा को ठेस पहुंची है। वहीं पुनिया के यूपी प्रेम और वोट बैंक की ओछी पालिटिक्स के चलते देश भर में दलितों और अनुसूचित जाति से जुड़ी शिकायतों और समस्याओं के प्रभावी निराकरण में अनावश्यक विलंब और परेशानी हो रही है। सही मायनो में पुनिया ने राष्ट्रीय स्तर के आयोग को राजनीति की वहज से एक प्रदेष के सीमित दायरे में बांध दिया है, जिसके चलते देशभर के दलितों और अनुसूचित जाति के लोगों को दुःख-तकलीफ और अन्य अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।


गौरतलब है कि नौकरशाह से राजनेता बने पुनिया का कार्यपालिका और विधायिका दोनों से पुराना नाता रहा है। किसी जमाने में पुनिया की गिनती मायावती के चेहते अफसरों में होती थी। पूर्व में माया सरकार में पुनिया सीएम के मुख्य सचिव की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाया करते थे। पुनिया के पूर्व अनुभव और दलित होना ही उनके लिए मुफीद साबित हुआ और सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने राजनीति का रास्ता चुन लिया। माया और बसपा का तिया-पांचा करने के लिए ही कांग्रेस ने उन्हें अपने कैंप में जगह दी। कांग्रेस की सोच यह थी कि यूपी में माया को टक्कर देने के लिए किसी मजबूत दलित नेता की जरूरत है और पुनिया को पार्टी में उसी खाली स्थान भरने के लिए लाया गया और उन्हें राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष भी बनाया गया। जिस खास मकसद से पुनिया को कांग्रेस में लाया गया था उसमें तो वो कामयाब रहे लेकिन उनके केवल यूपी पर केन्द्रित होने का खामियाजा देश भर में दलित और अनुसूचित जाति सुमदाय के लोग भुगत रहे हैं।

सोनिया और राहुल के विश्वस्त पुनिया कदम-कदम पर यूपी की माया सरकार को घेरने के मौका तलाशते हैं और खुद को मायावती के बाद दलितों का सबसे बड़ा नेता और मसीहा साबित करने में ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। बसपा की बामसेफ की तर्ज पर यूपी में कामसेफ बनाकर पुनिया ने कर्मचारी वर्ग को कांग्रेस के पाले में लानेका सफल दाव चल दिया है। बाबा रामदेव पर तीखे प्रहार करके पुनिया मीडिया में छाये रहने की कला भी बखूबी जानते है और यूपी में अनुसूचित जाति और दलितों पर होने वाले अत्याचार और अन्याय की घटनाओं पर वो व्यक्तिगत दौरे कर त्वरित कार्यवाही करते हैं लेकिन पता नहीं पुनिया साहब को यूपी से बाहर देश के कोने-कोने में आये दिन दलितों और अनुसूचित जाति के साथ होने वाले अत्याचार, अपराध और अन्याय दिखाई क्यों नहीं देते हैं। दूर दराज की बात तो अलग है अभी हाल ही में पंजाब के मुक्तसर जिले की अपर सत्र न्यायाधीश परवीन बाली को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने बिना किसी कारण के पद से हटाकर अनोखी मिसाल देश के सामने पेश की है। एक दलित महिला एवं जज परवीन बाबी ने अपनी लगन, मेहनत और योग्यता के बलबूते सीनियर जुडिशल सर्विस में एससी कोटे में प्रथम व जनरल कोटे में पांचवा स्थान पाकर सिविल जज की नौकरी हासिल की थी। 2008 बेच की इस महिला दलित जज को बिना किसी कारण उसके पद से हटाकर हाई कोर्ट ने देश भर के महिला अधिकारों के लड़ने-भिड़ने वाले संगठनों और देशवासियों का सोचने पर विवष किया है कि आखिरकर कहां हमारा समाज बदला है। पुनिया साहब को इस बात का संज्ञान लेकर इस मामले की छान-बीन करवानी चाहिए और एक प्रतिभावान दलित महिला जज का न्याय और उसका अधिकार दिलवाने के लिए प्रयास करना चाहिए।

पुनिया साहब मूलतः हरियाणा के निवासी हैं ऐसे में उन्हें बखूबी मालूम होगा कि हरियाणा में यूपी से अधिक जाति संघर्ष की घटनाएं होती हैं और वहां पर दलितों के प्रति भेदभाव और हिंसा की घटनाएं यूपी से किसी भी मामले में कम नहीं होती हैं। हरियाणा के मिर्चपुर में दलितों के साथ जो कुछ हुआ था वो पूरे देश की जनता जानती हैं। हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान के अलावा देश के कई अन्य राज्यों में कांग्रेसी सरकारें हैं और वहां भी आये दिन दलितों और अनुसूचित जाति समुदाय पर अत्याचार और अन्याय की खबरें सुनने को मिलती हैं लेकिन पुनिया साहब का सारा ध्यान यूपी और मायावती को घेरने में बीतता है। परवीन बाली तो पढ़ी-लिखी और जज के पद पर आसीन थी तब भी उसे एक दलित और महिला होने का अभिशप झेलना पड़ा। देश में दलितों और अनुसूचित जाति की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी अशिक्षित और मूलभूत सुविधाओं और संविधान प्रदत अधिकारों से वंचित है। ऐसे में देश के हजारों गांवों और कस्बों में रहने वाली दलित और अनुसूचित आबादी किस हाल में जी रही होगी का अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है। लेकिन हमारे कर्ता-धर्ता शुद्व राजनीति में मस्त हैं। पुनिया साहब को लखनऊ और यूपी के अलावा भी देश के दूसरे राज्यों का भी दौरा करना चाहिए। पुनिया साहब ये माना कि आप कांग्रेस के सांसद हैं और सोनिया राहुल की कृपा से आपको राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष का पद मिला हुआ है लेकिन राजनीति के साथ ही साथ अपने काम और धर्म को मत भूलिए क्योंकि जिस जनता ने आपको वोट देकर इस स्थान पर पहंुचाया है वो आपको आपकी हैसियत भी बता सकती है। इसलिए आपसे निवेदन है कि यूपी ही नहीं देश भर में दलितों और अनुसूचित जाति के कल्याण और भलाई के लिए भी समय निकालिए और सच्चे मन से अपनी बिरादरी और इस देश की जनता का भला करिए।

No comments:

Post a Comment